गलती कहाँ हुई ??
हमारी ज़िन्दगी में आज दुःख परेशानियाँ क़र्ज़ बीमारियाँ क्यूँ हैं । आईये समझने की कोशिश करते हैं...
"और जिस वृक्ष के फल के विषय मैंने तुझे आज्ञा दी थी तू उसे ना खाना उसको तूने खाया है, इसलिए भूमि तेरे कारण श्रापित है, तू उसकी उपज जीवन भर दुःख की साथ खाया करेगा, और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा\, और अंत में मिट्टी में मिल जायेगा, क्यूंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जायेगा।" परमेश्वर इस वचन पर आशीष दें, आमीन।
दोस्तों यहाँ हम देख रहे हैं उस पाप के परिणाम को जो आदम ने, जो कि पहला मनुष्य था, किया परमेश्वर की आज्ञा को न मानकर । जब भी हम परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ते हैं तब हम पाप में पड़ जाते हैं और उसका परिणाम हमें भुगतना पड़ता है किसी ना किसी रूप में दुःख, बीमारी, क़र्ज़ या परेशानी में ।
सिर्फ कोई बड़ी आज्ञा को तोडना या किसी को जान से मार देना या चोरी करना ही पाप नहीं, दोस्तों परमेश्वर कि आज्ञा को ना मानना या तोडना भी पाप है और सबसे पहला पाप मनुष्य ने यही किया और आज भी कर रहा है।
ज़रा सोचिये आज हम रोज़ाना की जिंदगी में कभी जाने और कभी अनजाने में ना जाने कितनी ही बार परमेश्वर की आज्ञाओं का अनादर और उलंघन करते हैं और फिर अंत में ये भी सोचते हैं की हमारे साथ ही बुरा क्यों होता है? आदम जो की पहला मनुष्य था उसने पहला पाप और गंभीर पाप ये ही क्या की परमेश्वर की आज्ञा को तोडा और ना माना, और हम रोज़ाना यही पाप करते हैं और फिर दुःख में पड़ कर परमेश्वर को याद करते हैं या उससे कोसते भी हैं या फिर अपनी किस्मत को कोसते हैं ।
ज़रा सोचिये !!!
परमेश्वर तब भी हमें सभी आशीषें देना चाहता था और आज भी देना चाहता है, बात ये नहीं थी की आदम ने उस फल को खाया जो उससे मना किया था लेकिन बात ये है की उसने परमेश्वर की आज्ञा को नहीं मना ।
जब परमेश्वर ने अदन की वाटिका और यहाँ तक की पूरी पृथ्वी और पशु पक्षी और जानवरों पर समंदर में जो कुछ है सब पर मनुष्य को अधिकार दिया तो ऐसा कैसे हो सकता है कि सिर्फ एक वृक्ष और उसके फल से आदम को और उसके बाद सब मनुष्यों को भी वन्चित्त रखे। क्या आप सोचते हैं कि पिता परमेश्वर का दिल इतना छोटा हो सकता है कि जब वो पहले ही सब कुछ बिना मांगे ही हमें दे रहा है तो सिर्फ एक ही चीज़ से वंचित करता ?
ज़रा सोचिये !!!
हम परमेश्वर कि आशीषों से तब अलग और दूर हो जाते हैं हैं जब परमेश्वर और हमारे बीच में पाप आ जाता है। पाप हमें परमेश्वर से और उसकी आशीषों और सुरक्षा से दूर कर देता है। और हम हर तरह के दुःख और बीमारियों में और श्रापों में पड़ जाते हैं। आज अगर हमारे साथ कुछ बुरा होता है तो इसका कारण हम और हमारे काम और हमारे पाप हमारे लालच ।
आज हमनें ये बातें सीखीं पहली ये कि जब भी हम लालच में अपने स्वार्थ में पड़ कर परमेश्वर कि आज्ञाओं को तोड़ते हैं तब तब हमें दुःख तकलीफ और परेशानियों का सामना करना पड़ता है, और परमेश्वर कि आज्ञाओं को तोडना पाप है और पाप ही परमेश्वर और मनुष्य के बीच की दुरी है दूसरी ये कि परमेश्वर भला है और हमें बहुतायत से आशीषें देता है बिना मांगे।
परमेश्वर आप सबको आशीष दे और बोहुतों की आशीष कर कारण बनाये। येशु के पवित्र नाम में आमीन।
जेम्स रॉक ।
James Rock
My Page:www.Facebook.com/ JamesRockSB
हमारी ज़िन्दगी में आज दुःख परेशानियाँ क़र्ज़ बीमारियाँ क्यूँ हैं । आईये समझने की कोशिश करते हैं...
दोस्तों आईये परमेश्वर के इस वचन पर मनन करें जो है जो कि उत्पत्ति कि किताब पवित्र बाईबल ३:१७-१९ से लिया गया है ।
दोस्तों यहाँ हम देख रहे हैं उस पाप के परिणाम को जो आदम ने, जो कि पहला मनुष्य था, किया परमेश्वर की आज्ञा को न मानकर । जब भी हम परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ते हैं तब हम पाप में पड़ जाते हैं और उसका परिणाम हमें भुगतना पड़ता है किसी ना किसी रूप में दुःख, बीमारी, क़र्ज़ या परेशानी में ।
सिर्फ कोई बड़ी आज्ञा को तोडना या किसी को जान से मार देना या चोरी करना ही पाप नहीं, दोस्तों परमेश्वर कि आज्ञा को ना मानना या तोडना भी पाप है और सबसे पहला पाप मनुष्य ने यही किया और आज भी कर रहा है।
ज़रा सोचिये आज हम रोज़ाना की जिंदगी में कभी जाने और कभी अनजाने में ना जाने कितनी ही बार परमेश्वर की आज्ञाओं का अनादर और उलंघन करते हैं और फिर अंत में ये भी सोचते हैं की हमारे साथ ही बुरा क्यों होता है? आदम जो की पहला मनुष्य था उसने पहला पाप और गंभीर पाप ये ही क्या की परमेश्वर की आज्ञा को तोडा और ना माना, और हम रोज़ाना यही पाप करते हैं और फिर दुःख में पड़ कर परमेश्वर को याद करते हैं या उससे कोसते भी हैं या फिर अपनी किस्मत को कोसते हैं ।
ज़रा सोचिये !!!
परमेश्वर तब भी हमें सभी आशीषें देना चाहता था और आज भी देना चाहता है, बात ये नहीं थी की आदम ने उस फल को खाया जो उससे मना किया था लेकिन बात ये है की उसने परमेश्वर की आज्ञा को नहीं मना ।
जब परमेश्वर ने अदन की वाटिका और यहाँ तक की पूरी पृथ्वी और पशु पक्षी और जानवरों पर समंदर में जो कुछ है सब पर मनुष्य को अधिकार दिया तो ऐसा कैसे हो सकता है कि सिर्फ एक वृक्ष और उसके फल से आदम को और उसके बाद सब मनुष्यों को भी वन्चित्त रखे। क्या आप सोचते हैं कि पिता परमेश्वर का दिल इतना छोटा हो सकता है कि जब वो पहले ही सब कुछ बिना मांगे ही हमें दे रहा है तो सिर्फ एक ही चीज़ से वंचित करता ?
ज़रा सोचिये !!!
हम परमेश्वर कि आशीषों से तब अलग और दूर हो जाते हैं हैं जब परमेश्वर और हमारे बीच में पाप आ जाता है। पाप हमें परमेश्वर से और उसकी आशीषों और सुरक्षा से दूर कर देता है। और हम हर तरह के दुःख और बीमारियों में और श्रापों में पड़ जाते हैं। आज अगर हमारे साथ कुछ बुरा होता है तो इसका कारण हम और हमारे काम और हमारे पाप हमारे लालच ।
आज हमनें ये बातें सीखीं पहली ये कि जब भी हम लालच में अपने स्वार्थ में पड़ कर परमेश्वर कि आज्ञाओं को तोड़ते हैं तब तब हमें दुःख तकलीफ और परेशानियों का सामना करना पड़ता है, और परमेश्वर कि आज्ञाओं को तोडना पाप है और पाप ही परमेश्वर और मनुष्य के बीच की दुरी है दूसरी ये कि परमेश्वर भला है और हमें बहुतायत से आशीषें देता है बिना मांगे।
परमेश्वर आप सबको आशीष दे और बोहुतों की आशीष कर कारण बनाये। येशु के पवित्र नाम में आमीन।
जेम्स रॉक ।
James Rock
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